दर्द की हद से गुज़रना तो अभी बाक़ी है
टूट कर मेरा बिखरना तो अभी बाक़ी है
पास आ कर मिरा दुख-दर्द बटाने वाले
मुझ से कतरा के गुज़रना तो अभी बाक़ी है
चंद शेरों में कहाँ ढलती है एहसास की आग
ग़म का ये रंग निखरना तो अभी बाक़ी है
रंग-ए-रुस्वाई सही शहर की दीवारों पर
नाम 'राशिद' का उभरना तो अभी बाक़ी है

ग़ज़ल
दर्द की हद से गुज़रना तो अभी बाक़ी है
राशिद कामिल