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दर्द के साँचे में ढल कर रह गई | शाही शायरी
dard ke sanche mein Dhal kar rah gai

ग़ज़ल

दर्द के साँचे में ढल कर रह गई

अर्शी भोपाली

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दर्द के साँचे में ढल कर रह गई
ज़िंदगी करवट बदल कर रह गई

वक़्त-ए-नज़्ज़ारा निगाह-ए-बारयाब
उन के जल्वों में मचल कर रह गई

आँख में आँसू मचल कर रह गए
मौज दरिया में उछल कर रह गई

क्या किया ऐ बुलबुल-ए-आतिश-नवा
आशियाँ में बर्क़ जल कर रह गई

उन का ग़म मुझ को वदीअ'त हो गया
सारी दुनिया हाथ मल कर रह गई