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दर्द इतना भी नहीं है कि छुपा भी न सकूँ | शाही शायरी
dard itna bhi nahin hai ki chhupa bhi na sakun

ग़ज़ल

दर्द इतना भी नहीं है कि छुपा भी न सकूँ

साजिद हमीद

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दर्द इतना भी नहीं है कि छुपा भी न सकूँ
बोझ ऐसा भी नहीं है कि उठा भी न सकूँ

यूँ समाई है इन आँखों में बता भी न सकूँ
दिल की दीवार पे तस्वीर सजा भी न सकूँ

ख़ैरियत पूछते रहते हो मगर हाल ये है
उस की आवाज़ में आवाज़ मिला भी न सकूँ

आ मिरे पास ज़रा सुन के बता कहती है क्या
दिल की धड़कन जो सर-ए-आम सुना भी न सकूँ

जब्र देखा था मगर ऐसा नहीं देखा था
ऐसे पहरे हैं कि पलकें मैं उठा भी न सकूँ

उँगलियाँ चाक हुआ करती थीं पहले 'साजिद'
अब गए हाथ कि मैं हाथ मिला भी न सकूँ