दर्द दिल से कभी जुदा न हुआ
कोई हमदर्द आप सा न हुआ
उन के हमराह था तमाम सफ़र
तय मगर फिर भी रास्ता न हुआ
हम भँवर में थे डूबते ही गए
नाख़ुदा तो कभी ख़ुदा न हुआ
आप का ग़म है आप से बेहतर
वो कभी हम से बे-वफ़ा न हुआ
हैं सभी लोग शहर के अच्छे
हम से बढ़ कर कोई बुरा न हुआ
हम से रूठी रही 'किरन' लेकिन
दिल तो दिल से कभी जुदा न हुआ

ग़ज़ल
दर्द दिल से कभी जुदा न हुआ
कविता किरन