EN اردو
दर-ए-उफ़ुक़ पे रक़म रौशनी का बाब करें | शाही शायरी
dar-e-ufuq pe raqam raushni ka bab karen

ग़ज़ल

दर-ए-उफ़ुक़ पे रक़म रौशनी का बाब करें

अब्बास ताबिश

;

दर-ए-उफ़ुक़ पे रक़म रौशनी का बाब करें
ये जी में है कि सितारे को आफ़्ताब करें

निगह में घूमती फिरती हैं सूरतें क्या क्या
किसे ख़याल में लाएँ किसे ख़राब करें

ये आरज़ू है कि फूटें बदन के खे़मे से
और अपनी ज़ात के सहरा में रक़्स-ए-आब करें

मिरे हुरूफ़-ए-तहज्जी की क्या मजाल कि वो
तुझे शुमार में लाएँ तिरा हिसाब करें

नहीं है शहर में कोई भी जागने वाला
किसे कहें कि चलो सैर-ए-माहताब करें

फ़लक तो गोश-बर-आवाज़ है मगर 'ताबिश'
न हो ज़बान ही मुँह में तो क्या ख़िताब करें