दम-ए-आख़िर मुसीबत काट दो बहर-ए-ख़ुदा मेरी
तुम आ कर दर्द के पर्दे में कर जाओ दवा मेरी
मोहब्बत बुत-कदे में चल के उस का फ़ैसला कर दे
ख़ुदा मेरा ख़ुदा है या ये मूरत है ख़ुदा मेरी
यहाँ से जब गई थी तब असर पर ख़ार खाए थी
वहाँ से फूल बरसाती हुई पलटी दुआ मेरी
तू ही कह दे ये जिस्म-ए-ज़ार मेरा है कि तेरा है
तू ही कह दे ये रूह-ए-ना-तवाँ तेरी है या मेरी
पड़ा है तफ़रक़ा जिस दिन से क्या क्या याद करती है
उधर मुझ को जफ़ा तेरी इधर तुझ को वफ़ा मेरी
मुक़य्यद हो के लुत्फ़-ए-हस्ती-ए-आज़ाद भी खोया
वो क्या थी इब्तिदा मेरी ये क्या है इंतिहा मेरी
वहाँ जब थे तो जिस्म-ए-ना-तावाँ में रूह फूंकी थी
यहाँ जिस दिन से आए आप बन बैठे क़ज़ा मेरी
मियान-ए-हश्र ये काफ़िर बड़े इतराए फिरते हैं
मज़ा आ जाए ऐसे में अगर सुन ले ख़ुदा मेरी
किसी का जल्वा-ए-रंगीं ये कहता है इन्हें पूजो
ये उस पत्थर के बुत हैं जिस पे पिस्ती थी हिना मेरी
न-जाने कौन से यूसुफ़ का जल्वा मुझ में पिन्हाँ है
ज़ुलेख़ा आज तक करती है 'मुज़्तर' इल्तिजा मेरी
ग़ज़ल
दम-ए-आख़िर मुसीबत काट दो बहर-ए-ख़ुदा मेरी
मुज़्तर ख़ैराबादी