EN اردو
दम-भर की ख़ुशी बाइस-ए-आज़ार भी होगी | शाही शायरी
dam-bhar ki KHushi bais-e-azar bhi hogi

ग़ज़ल

दम-भर की ख़ुशी बाइस-ए-आज़ार भी होगी

रशीद क़ैसरानी

;

दम-भर की ख़ुशी बाइस-ए-आज़ार भी होगी
इस राह में साया है तो दीवार भी होगी

सदियों से जहाँ जिस के तआक़ुब में रवाँ है
वो साअत-ए-सद-रंग गिरफ़्तार भी होगी

रंगों की रिदा ओढ़ के उस रेग-ए-रवाँ पर
उतरी है जो शब वो शब-ए-दीदार भी होगी

इठलाएगा पलकों पे कभी सुब्ह का तारा
बेदार कभी नर्गिस-ए-बीमार भी होगी

कहता है मिरे कान में ख़ुशबू का पयामी
मुँह-बंद कली माइल-ए-गुफ़्तार भी होगी

साए से लिपट जाएँगे पाँव से ब-हर-गाम
रुस्वाई कुछ अपनी सर-ए-बाज़ार भी होगी

ऐ शब न कटेगी तिरे सीने की सियाही
इक शोख़ किरन मुफ़्त गुनहगार भी होगी

सुनते हैं कि हर सुब्ह के हाथों में 'रशीद' अब
ज़हराब में डूबी हुई तलवार में होगी