EN اردو
दम-ब-दम बढ़ रही है ये कैसी सदा शहर वालो सुनो | शाही शायरी
dam-ba-dam baDh rahi hai ye kaisi sada shahr walo suno

ग़ज़ल

दम-ब-दम बढ़ रही है ये कैसी सदा शहर वालो सुनो

अतहर नफ़ीस

;

दम-ब-दम बढ़ रही है ये कैसी सदा शहर वालो सुनो
जैसे आए दबे पाँव सैल-ए-बला शहर वालो सुनो

ख़ाक उड़ाती न थी इस तरह तो हवा उस को क्या हो गया
देखो आवाज़ देता है इक सानेहा शहर वालो सुनो

ये जो रातों में फिरता है तन्हा बहुत है अकेला बहुत
हो सके तो कभी उस का भी माजरा शहर वालो सुनो

ये हमीं में से है उस के रंज-ओ-अलम उस से पूछो कभी
हाँ सुनो उस की रूदाद-ए-मेहर-ओ-वफ़ा शहर वालो सुनो

उस के जी में है क्या उस से पूछो ज़रा देखें कहता है क्या
किस ने उस शख़्स पर कोह-ए-ग़म ढा दिया शहर वालो सुनो

उम्र भर का सफ़र जिस का हासिल है इक लम्हा-ए-मुख़्तसर
किस ने क्या खो दिया किस ने क्या पा लिया शहर वालो सुनो

उस की बे-ख़्वाब आँखों में झाँको कभी उस को समझो कभी
उस को बेदार रखता है क्या वाक़िआ' शहर वालो सुनो