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दामन-ए-सद-चाक को इक बार सी लेता हूँ मैं | शाही शायरी
daman-e-sad-chaak ko ek bar si leta hun main

ग़ज़ल

दामन-ए-सद-चाक को इक बार सी लेता हूँ मैं

राजेन्द्र नाथ रहबर

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दामन-ए-सद-चाक को इक बार सी लेता हूँ मैं
तुम अगर कहते हो तो कुछ रोज़ जी लेता हूँ मैं

बे-सबब पीना मिरी आदात में शामिल नहीं
मस्त आँखों का इशारा हो तो पी लेता हूँ मैं

गेसुओं का हो घना साया कि शिद्दत धूप की
वो मुझे जिस रंग में रखता है जी लेता हूँ मैं

आते आते आ गए अंदाज़ जीने के मुझे
अब तो 'रहबर' ख़ून के आँसू भी पी लेता हूँ मैं