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दामन दराज़ कर तो रहे हो दुआओं के | शाही शायरी
daman daraaz kar to rahe ho duaon ke

ग़ज़ल

दामन दराज़ कर तो रहे हो दुआओं के

मोहम्मद अमीर आज़म क़ुरैशी

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दामन दराज़ कर तो रहे हो दुआओं के
धब्बे भी हैं निगाह में अपनी क़बाओं के

सीने में सोज़-ए-मर्ग-ए-तमन्ना न पूछिए
मरघट में जैसे उठते हों शो'ले चिताओं के

हम ने तो कश्तियों को डुबोना किया क़ुबूल
मन्नत-गुज़ार हो न सके ना-ख़ुदाओं के

दुनिया ने उन पे चलने की राहें बनाई हैं
आए नज़र जहाँ भी निशाँ मेरे पाँव के

सहरा के ख़ुश्क सीने से चश्मा उबल पड़ा
रगड़े लगे जो नन्हे से बच्चे के पाँव के

बूढ़ा सा एक पेड़ वो अब सहन में नहीं
हम ने उठाए फ़ैज़ सदा जिस की छाँव के

पी लो 'अमीर' अब मय-ए-इरफ़ान-ओ-आगही
क्यूँ जाल में फँसे हो मजाज़ी ख़ुदाओं के