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दामान-ए-शब में चाँद का मंज़र भी देख ले | शाही शायरी
daman-e-shab mein chand ka manzar bhi dekh le

ग़ज़ल

दामान-ए-शब में चाँद का मंज़र भी देख ले

जावेद शाहीन

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दामान-ए-शब में चाँद का मंज़र भी देख ले
सोने से पहले कमरे से बाहर भी देख ले

इन मौसमों की राह में यूँ बे-ख़बर न बैठ
रहता है कौन कौन सफ़र पर भी देख ले

गुम-सुम रखेगी तुझ को कहाँ तक वो एक याद
मुँह से हटा के मैली सी चादर भी देख ले

धुँदला रही है देर से शम-ए-बदन की लौ
कोई ग़ुबार साँस के अंदर भी देख ले

आबाद ज़ेर-ए-आब हैं डूबे हुए नगर
यादों के पानियों में उतर कर भी देख ले

फ़ुर्सत मिले तो खोल छुपे ख़्वाहिशों के राज़
गुंजान जंगलों से गुज़र कर भी देख ले

'शाहीं' बदन भी ज़ेर किया जाँ भी ज़ेर कर
दश्त-ए-बला से आगे समुंदर भी देख ले