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डालता अद्ल की झोली में स्याही कैसे | शाही शायरी
Dalta adl ki jholi mein syahi kaise

ग़ज़ल

डालता अद्ल की झोली में स्याही कैसे

सूरज नारायण

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डालता अद्ल की झोली में स्याही कैसे
माँगता मुझ से कोई झूटी गवाही कैसे

क्या तिरे जिस्म पे टूटी है क़यामत कोई
दफ़अतन आज मिरी रूह कराही कैसे

जब हर इक दर्द की ज़ंजीर को कट जाना है
फिर तिरा दर्द हुआ ला-मतनाही कैसे

कितना बे-ढंग तनासुब है महाज़-ए-ग़म पर
इतने लश्कर से लड़े एक सिपाही कैसे

जी रहा हूँ मैं ग़ुलामों का हवाला बन कर
मेरी पहचान बने मसनद-ए-शाही कैसे

किस हवाले से था मौसम का सितम पेड़ों पर
दूर तक फैल गई ज़र्द तबाही कैसे