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दाग़ धुल गए अब तो दर्द में कमी सी है | शाही शायरी
dagh dhul gae ab to dard mein kami si hai

ग़ज़ल

दाग़ धुल गए अब तो दर्द में कमी सी है

ख़ुर्शीदुल इस्लाम

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दाग़ धुल गए अब तो दर्द में कमी सी है
ज़िंदगी न जाने क्यूँ फिर भी अजनबी सी है

कल जिस आबगीने से मौज-ए-मय छलकती थी
आज उस आबगीने की आँख में नमी सी है

कैफ़-ए-चश्म-ए-साक़ी में कुछ कमी नहीं लेकिन
जश्न-ए-मय-गुसाराँ में आज बे-दिली सी है

गर्दिश-ए-जहाँ में भी कुछ असर है लग़्ज़िश का
और नब्ज़-ए-हस्ती भी कुछ रुकी रुकी सी है

साज़-ए-आरज़ू चुप है रूह में है सन्नाटा
दिल में जो भी सूरत है अब मिटी मिटी सी है