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चुप थे बरगद ख़ुश्क मौसम का गिला करते न थे | शाही शायरी
chup the bargad KHushk mausam ka gila karte na the

ग़ज़ल

चुप थे बरगद ख़ुश्क मौसम का गिला करते न थे

नश्तर ख़ानक़ाही

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चुप थे बरगद ख़ुश्क मौसम का गिला करते न थे
चल रही थीं आँधियाँ पत्ते सदा करते न थे

हम रसीदा थे कि देखें दूसरों को शो'ला-पा
थे सफ़र में और सफ़र की इब्तिदा करते न थे

बंद था पानी सफ़-आरा थे ग़नीम-ए-रू-सियाह
हम अदा इस पर भी रस्म-ए-कर्बला करते न थे

मुतमइन थे अहल-ए-मक़्तल नीम-जाँ कर के मुझे
कैसी हुश्यारी थी सर तन से जुदा करते न थे

हम को किस शब ज़िंदा रहने की हवस होती न थी
दिन में हम कब ख़ुद-कुशी का फ़ैसला करते न थे

कैसे दूर-अंदेश मुंसिफ़ थे कि इन्साफ़न मुझे
मानते थे बे-ख़ता लेकिन रिहा करते न थे