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चुप-चाप सुलगता है दिया तुम भी तो देखो | शाही शायरी
chup-chap sulagta hai diya tum bhi to dekho

ग़ज़ल

चुप-चाप सुलगता है दिया तुम भी तो देखो

बशर नवाज़

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चुप-चाप सुलगता है दिया तुम भी तो देखो
किस दर्द को कहते हैं वफ़ा तुम भी तो देखो

महताब-ब-कफ़ रात कसे ढूँड रही है
कुछ दूर चलो आओ ज़रा तुम भी तो देखो

किस तरह किनारों को है सीने से लगाए
ठहरे हुए पानी की अदा तुम भी तो देखो

यादों के समन-ज़ार से आई हुई ख़ुश्बू
दामन में छुपा लाई है क्या तुम भी तो देखो

कुछ रात गए रोज़ जो आती है फ़ज़ा से
हर दिल में है इक ज़ख़्म छुपा तुम भी तो देखो

हर हँसते हुए फूल से रिश्ता है ख़िज़ाँ का
हर दिल में है इक ज़ख़्म छुपा तुम भी तो देखो

क्यूँ आने लगीं साँस में गहराइयाँ सोचो
क्यूँ टूट चले बंद-ए-क़बा तुम भी तो देखो