चुप भी हो बक रहा है क्या वाइज़
मग़्ज़ रिंदों का खा गया वाइज़
तेरे कहने से रिंद जाएँगे
ये तो है ख़ाना-ए-ख़ुदा वाइज़
अल्लाह अल्लाह ये किब्र और ये ग़ुरूर
क्या ख़ुदा का है दूसरा वाइज़
बे-ख़ता मय-कशों पे चश्म-ए-ग़ज़ब
हश्र होने दे देखना वाइज़
हम हैं क़हत-ए-शराब से बीमार
किस मरज़ की है तू दवा वाइज़
रह चुका मय-कदे में सारी उम्र
कभी मय-ख़ाने में भी आ वाइज़
हज्व-ए-मय कर रहा था मिम्बर पर
हम जो पहुँचे तो पी गया वाइज़
दुख़्त-ए-रज़ को बुरा मिरे आगे
फिर न कहना कभी सुना वाइज़
आज करता हूँ वस्फ़-ए-मय मैं 'अमीर'
देखूँ कहता है इस में क्या वाइज़
ग़ज़ल
चुप भी हो बक रहा है क्या वाइज़
अमीर मीनाई