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चोरी चोरी आँख लड़ते में दिखा दूँ तो सही | शाही शायरी
chori chori aankh laDte mein dikha dun to sahi

ग़ज़ल

चोरी चोरी आँख लड़ते में दिखा दूँ तो सही

मोहम्मद अमान निसार

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चोरी चोरी आँख लड़ते में दिखा दूँ तो सही
खाँस कर खँखार कर उस को जता दूँ तो सही

मिल तो देखे ग़ैर से किस तरह मिलता है वो शोख़
वो जो नक़्शा उस ने बाँधा है मिटा दूँ तो सही

जल-बुझे सीने में दिल लेकिन न निकले मुँह से आह
दर मुक़फ़्फ़ल कर के मैं घर को जला दूँ तो सही

इश्क़ कहता है कि सर-रिश्ता दिल का मेरे हाथ
जूँ पतंग इक दिन कटा कर मैं लुटा दूँ तो सही

साथ ले कर यार ग़ैरों को इधर आता तो है
ऐ 'निसार' उस से ये रस्ता मैं छुड़ा दूँ तो सही