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चोर दरवाज़ा याँ के हम भी हैं | शाही शायरी
chor darwaza yan ke hum bhi hain

ग़ज़ल

चोर दरवाज़ा याँ के हम भी हैं

किशन कुमार वक़ार

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चोर दरवाज़ा याँ के हम भी हैं
इन को रौज़न से झाँके हम भी हैं

जो अदम को वजूद से हैं गए
गर्द उस कारवाँ के हम भी हैं

फ़ाश पर्दा करो न कुश्तों का
नज़्अ' में मुँह को ढाँके हम भी हैं

इश्क़ छोटा बना चुका वर्ना
इक बड़े ख़ानदाँ के हम भी हैं

तिरछी नज़रों को सीधा रखें आप
वर्ना इक टेढ़े बाँके हम भी हैं

है ज़मीं का सताया क़ैस अगर
ज़ख़्म-चीं आसमाँ के हम भी हैं

नक़्श बैठा उठेगा किस से 'वक़ार'
संग-बोस आस्ताँ के हम भी हैं