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चीज़ दिल है रुख़-ए-गुलफ़ाम में क्या रक्खा है | शाही शायरी
chiz dil hai ruKH-e-gulfam mein kya rakkha hai

ग़ज़ल

चीज़ दिल है रुख़-ए-गुलफ़ाम में क्या रक्खा है

आनंद नारायण मुल्ला

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चीज़ दिल है रुख़-ए-गुलफ़ाम में क्या रक्खा है
कैफ़ सहबा में है ख़ुद जाम में क्या रक्खा है

गुनगुनाता हुआ दिल चाहिए जीने के लिए
इस नज़ा-ए-सह्र-ओ-शाम में क्या रक्खा है

कौन किस तरह से होता है हरीफ़-ए-मय-ए-ज़ीस्त
और तल्ख़ाबा-ए-अय्याम में क्या रक्खा है

इश्क़ करता है तो कर और निगाहों को बुलंद
रिश्ता-ए-रहगुज़र-ओ-बाम में क्या रक्खा है

मुर्ग़-ए-आज़ाद हुआ क्या तिरी ख़ुद्दारी को
चंद दानों के सिवा दाम में क्या रक्खा है

हुस्न फ़नकार की इक छेड़ है इश्क़-ए-नादाँ
बेवफ़ाई के इस इल्ज़ाम में क्या रक्खा है

देखना ये है कि वो दिल में मकीं है कि नहीं
चाहे जिस नाम से हो नाम में क्या रक्खा है

दें मिरे ज़ौक़-ए-परस्तिश को दुआएँ 'मुल्ला'
वर्ना पत्थर के इन असनाम में क्या रक्खा है