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छुपाता हूँ मगर छुपता नहीं दर्द-ए-निहाँ फिर भी | शाही शायरी
chhupata hun magar chhupta nahin dard-e-nihan phir bhi

ग़ज़ल

छुपाता हूँ मगर छुपता नहीं दर्द-ए-निहाँ फिर भी

सीमाब अकबराबादी

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छुपाता हूँ मगर छुपता नहीं दर्द-ए-निहाँ फिर भी
निगाह-ए-यास हो जाती है दिल की तर्जुमाँ फिर भी

ग़म-ए-वामाँदगी से बे-नियाज़-ए-होश बैठा हूँ
चली आती है आवाज़-ए-दरा-ए-कारवाँ फिर भी

हिजाब-अंदर-हिजाब अमवाज-ए-तूफ़ान-ए-तजल्ली हैं
फ़रोग़-ए-शम'अ से परवाना है आतिश-बजाँ फिर भी

इशारों से निगाहों से बहुत कुछ मनअ करता हूँ
क़फ़स ही पर झुकी पड़ती है शाख़-ए-आशियाँ फिर भी

बहुत दिलचस्प है 'सीमाब' शाम-ए-वादी-ए-ग़ुर्बत
वतन की सुब्ह में कुछ और थीं रंगीनियाँ फिर भी