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छुपा रक्खा था यूँ ख़ुद को कमाल मेरा था | शाही शायरी
chhupa rakkha tha yun KHud ko kamal mera tha

ग़ज़ल

छुपा रक्खा था यूँ ख़ुद को कमाल मेरा था

मुग़नी तबस्सुम

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छुपा रक्खा था यूँ ख़ुद को कमाल मेरा था
किसी पे खुल नहीं पाया जो हाल मेरा था

हर एक पा-ए-शिकस्ता में थी मिरी ज़ंजीर
हर एक दस्त-ए-तलब में सवाल मेरा था

मैं रेज़ा रेज़ा बिखरता चला गया ख़ुद ही
कि अपने आप से बचना मुहाल मेरा था

हर एक सम्त से संग-ए-सदा की बारिश थी
मैं चुप रहा कि यही कुछ मआल मेरा था

तिरा ख़याल था ताज़ा हवा के झोंके में
जो गर्द उड़ के गई है मलाल मेरा था

मैं रो पड़ा हूँ 'तबस्सुम' सियाह रातों में
ग़ुरूब-ए-माह में शायद ज़वाल मेरा था