छुप के ग़ैरों से दिल में आ जाना 
ऐ सनम रुख़ मुझे दिखा जाना 
बर-सर-राह है मिरी तुर्बत 
हाथ बहर-ए-दुआ उठा जाना 
दिल में रहता है उस के नक़्श-ए-सनम 
शैख़ को हम ने पारसा जाना 
ग़ैर मुमकिन है दख़्ल-ए-ग़ैर इस में 
दिल को जब ख़ाना-ए-ख़ुदा जाना 
ऐ मदद-गार जिन्न-ओ-इंसाँ के 
बिगड़ियों को मिरी बना जाना 
इस से अफ़्ज़ूँ सितम नहीं कोई 
क़त्ल-ए-आशिक़ को तुम ने क्या जाना 
क्या बताऊँ तुझे 'जमीला' मैं 
आफ़त-ए-जाँ है दिल का आ जाना
        ग़ज़ल
छुप के ग़ैरों से दिल में आ जाना
जमीला ख़ुदा बख़्श

