छुप के दुनिया से सवाद-ए-दिल-ए-ख़ामोश में आ
आ यहाँ तू मिरी तरसी हुई आग़ोश में आ
और दुनिया में कहीं तेरा ठिकाना ही नहीं
ऐ मिरे दिल की तमन्ना लब-ए-ख़ामोश में आ
मय-ए-रंगीं पस-ए-मीना से इशारे कब तक
एक दिन साग़र-ए-रिंदान-ए-बला-नोश में आ
इश्क़ करता है तो फिर इश्क़ की तौहीन न कर
या तो बेहोश न हो हो तो न फिर होश में आ
तू बदल दे न कहीं जौहर-ए-इंसाँ का भी रंग
ऐ ज़माने के लहू देख न यूँ जोश में आ
देख क्या दाम लगाती है निगाह-ए-'मुल्ला'
कभी ऐ ग़ुंचा-ए-तर दस्त-ए-गुल-अफ़रोश में आ
ग़ज़ल
छुप के दुनिया से सवाद-ए-दिल-ए-ख़ामोश में आ
आनंद नारायण मुल्ला