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छलक रही है मय-ए-नाब तिश्नगी के लिए | शाही शायरी
chhalak rahi hai mai-e-nab tishnagi ke liye

ग़ज़ल

छलक रही है मय-ए-नाब तिश्नगी के लिए

ज़ेहरा निगाह

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छलक रही है मय-ए-नाब तिश्नगी के लिए
सँवर रही है तिरी बज़्म बरहमी के लिए

नहीं नहीं हमें अब तेरी जुस्तुजू भी नहीं
तुझे भी भूल गए हम तिरी ख़ुशी के लिए

जो तीरगी में हुवैदा हो क़ल्ब-ए-इंसाँ से
ज़िया-नवाज़ वो शोला है तीरगी के लिए

कहाँ के इश्क़-ओ-मोहब्बत किधर के हिज्र ओ विसाल
अभी तो लोग तरसते हैं ज़िंदगी के लिए

जहान-ए-नौ का तसव्वुर हयात-ए-नौ का ख़याल
बड़े फ़रेब दिए तुम ने बंदगी के लिए

मय-ए-हयात में शामिल है तल्ख़ी-ए-दौराँ
जभी तो पी के तरसते हैं बे-ख़ुदी के लिए