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छाँव से उस ने दामन भर के रक्खा है | शाही शायरी
chhanw se usne daman bhar ke rakkha hai

ग़ज़ल

छाँव से उस ने दामन भर के रक्खा है

ज़करिय़ा शाज़

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छाँव से उस ने दामन भर के रक्खा है
जिस ने धूप को ऊपर सर के रक्खा है

पल पल ख़ून बहाता हूँ इन आँखों से
मैं ने ख़ुद को मंदा मर के रक्खा है

सारी बात ही पहले क़दम की होती है
पहला क़दम ही तू ने डर के रक्खा है

अपने ही बस पीछे भागता रहता हूँ
ख़ुद को ही बस आगे नज़र के रक्खा है

ख़ुद ही खड़े हुए हैं अपने पैरों पर
हाथ अपना ही ऊपर सर के रक्खा है

'शाज़' उस से ही ख़ुश होता है वक़्त उस्ताद
याद सबक़ सब जिस ने कर के रक्खा है