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चेहरा तो चमक दमक रहा है | शाही शायरी
chehra to chamak damak raha hai

ग़ज़ल

चेहरा तो चमक दमक रहा है

मुशफ़िक़ ख़्वाजा

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चेहरा तो चमक दमक रहा है
अंदर से ये शख़्स बुझ चुका है

थी तब्-ए-रवाँ मिसाल-ए-दरिया
दरिया ये मगर उतर गया है

आँखों में थे ख़्वाब सौ तरह के
ये रंग-महल उजड़ चुका है

नक़्श उस के हैं बे-नुमूद सारे
नग़्मा ऐसा कि बे-सदा है

बैठा है उदास घर में तन्हा
जैसे कोई उस को ढूँढता है

तुम उस को तलाश क्या करोगे
ख़ुद अपने से जो बिछड़ चुका है

ये रंग-ए-सुख़न है ख़ास उस का
इक ऐसी ग़ज़ल जो मर्सिया है