चश्म-ए-नम-दीदा सही ख़ित्ता-ए-शादाब मिरा
रात की रात महकता है गुल-ए-ख़्वाब मिरा
अब तही-रख़्त भी हो कर मैं तही-रख़्त नहीं
ख़्वाहिश-ए-बादिया-पैमाई है अस्बाब मिरा
सब्त कर और कोई मोहर मिरे होंटों पर
क़ुफ़्ल-ए-अबजद से नहीं बंद हुआ बाब मिरा
साहिल-ए-चश्म पे कपड़ों को सुखाने वाले
तू ने कब पार किया था दिल-ए-पायाब मिरा
नाम मेरा तो किया उस ने क़लम-ज़द लेकिन
दफ़्तर-ए-इश्क़ से ख़ारिज न हुआ बाब मिरा
जिस क़दर आई फ़राख़ी मिरे दिल में 'ताबिश'
उतना ही तंग हुआ हल्क़ा-ए-अहबाब मिरा
ग़ज़ल
चश्म-ए-नम-दीदा सही ख़ित्ता-ए-शादाब मिरा
अब्बास ताबिश