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चमन-बंदी पे है महशर बपा क्या | शाही शायरी
chaman-bandi pe hai mahshar bapa kya

ग़ज़ल

चमन-बंदी पे है महशर बपा क्या

क़य्यूम नज़र

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चमन-बंदी पे है महशर बपा क्या
खिले हैं गुल उड़ी है ख़ाक क्या क्या

शहीदान-ए-वफ़ा भी जी उठेंगे
कोई जादू जगा अब पूछना क्या

ख़िराम-ए-नाज़ मौज़ूँ है तुझी को
उठी अठखेलियाँ करती सबा क्या

फ़साद-ए-ईं-ओ-आँ है किस के दम से
कहेंगे और तुझ से बरमला क्या

क़यामत है कि वो यूँ भी हैं ना-ख़ुश
दुआ में भी था हर्फ़-ए-मुद्दआ क्या

फ़रेब-ए-आगही ने मार डाला
ख़ुदा क्या नाख़ुदा क्या और क्या क्या

यही उड़ता हुआ लम्हा रहेगा
अबस है इब्तिदा क्या इंतिहा क्या

ग़ुबार-ए-कहकशाँ छट भी गया तो
कहीं ले जाएगा ये रास्ता क्या

'नज़र' इस कैफ़ियत से कौन निकले
हुआ वो आश्ना ना-आश्ना क्या