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चले बज़्म-ए-दौराँ से जब ज़हर पी के | शाही शायरी
chale bazm-e-dauran se jab zahr pi ke

ग़ज़ल

चले बज़्म-ए-दौराँ से जब ज़हर पी के

अलीम मसरूर

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चले बज़्म-ए-दौराँ से जब ज़हर पी के
बढ़े हौसले और भी ज़िंदगी के

फ़सानों से मेरी ही आवारगी के
मुअय्यन हुए रास्ते ज़िंदगी के

ज़माने को दूँ क्या कि दामन में मेरे
फ़क़त चंद आँसू हैं वो भी किसी के

निगाह-ए-करम की ज़रूरत नहीं है
ज़रा देख लूँ बे-सहारे भी जी के

हैं 'मसरूर' आँखें तुम्हारी जो पुर-नम
बताओ ये आँसू हैं ग़म या ख़ुशी के