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चाँद पर है मुझे तेरा ही गुमाँ आज की रात | शाही शायरी
chand par hai mujhe tera hi guman aaj ki raat

ग़ज़ल

चाँद पर है मुझे तेरा ही गुमाँ आज की रात

इशरत अनवर

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चाँद पर है मुझे तेरा ही गुमाँ आज की रात
सूझता ही नहीं कुछ सूद-ओ-ज़ियाँ आज की रात

दर्द-ए-इंसान में इंसान मिटा जाता है
इक नए अहद का मिलता है निशाँ आज की रात

जामा-ए-हस्ती-ए-इंसाँ है ब-रंग-ए-मातम
उठ रहा है शम-ए-सोज़ाँ से धुआँ आज की रात

इक नए मोड़ पे है दर्द-ए-मोहब्बत अपना
दारु-ए-दर्द है ख़ुद दर्द-ए-जहाँ आज की रात

ऐ सितारों के ख़ुदावंद ये क्या आलम है
चाँदनी में भी है तारीक जहाँ आज की रात

क्या है मेराज यही दर्द की लज़्ज़त अपनी
क्या इसी में हैं रुमूज़-ए-दो-जहाँ आज की रात

दूर से आती हैं कानों में दिलों की आहें
क्या इन्हीं में है ख़ुदा-वन्द-ए-जहाँ आज की रात

जो भी मज़लूम है दिल उस के लिए रोता है
मेरी हर साँस में है शोर-ए-फ़ुग़ाँ आज की रात