चाँद अपनी वुसअतों में गुम-शुदा रह जाएगा
हम न होंगे तो कहाँ कोई दिया रह जाएगा
रफ़्ता रफ़्ता ज़ेहन के सब क़ुमक़ुमे बुझ जाएँगे
और इक अंधे नगर का रास्ता रह जाएगा
तितलियों के साथ ही पागल हवा खो जाएगी
पत्तियों की ओट में कोई छुपा रह जाएगा
ज़र्द पत्तों की तरह इक दिन बिखर जाएगा तू
जा चुके मौसम को तन्हा सोचता रह जाएगा
शहर-ए-वीराँ में हज़ारों ख़्वाब ले कर इक दिया
ज़द पे तूफ़ानों की होगा और जला रह जाएगा
डूबते तारों की सूरत कुछ लकीरें छोड़ कर
मेरे होने और न होने का सिरा रह जाएगा
आँधियाँ कर देंगी गुल 'इशरत' फ़सीलों के चराग़
इक दिया लेकिन तमन्ना का जला रह जाएगा
ग़ज़ल
चाँद अपनी वुसअतों में गुम-शुदा रह जाएगा
इशरत रूमानी