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चाह की तुम से इल्तिजा की है | शाही शायरी
chah ki tum se iltija ki hai

ग़ज़ल

चाह की तुम से इल्तिजा की है

मोहम्मद मंशाउर्रहमान ख़ाँ मंशा

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चाह की तुम से इल्तिजा की है
हम ने कितनी हसीं ख़ता की है

ज़ुल्म जिन दोस्तों ने ढाए हैं
दिल ने उन के लिए दुआ की है

ज़ुल्फ़-ए-हस्ती सँवारने के लिए
हम ने कोशिश तो बारहा की है

डूबते हैं सफ़ीने साहिल पर
सब इनायत ये ना-ख़ुदा की है

इस पे बंदों की हाकिमी कैसी
जब ये सारी ज़मीं ख़ुदा की है

जान पर अपनी खेल कर 'मंशा'
करने वालों ने याँ वफ़ा की है