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बुतों की काकुलों के देख कर पेच | शाही शायरी
buton ki kakulon ke dekh kar pech

ग़ज़ल

बुतों की काकुलों के देख कर पेच

नज़ीर अकबराबादी

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बुतों की काकुलों के देख कर पेच
पड़े हैं दिल पे क्या क्या पेच पर पेच

तरीक़-ए-इश्क़ बे-रहबर न हो तय
कि है ये रह निहायत पेच-दर-पेच

न होवे दिल की तुक्कल कट के बरबाद
अगर डाले न वो तार-ए-नज़र पेच

वो ज़ुल्फ़ उस की जो है पुर-पेच ओ पुर-ख़म
कमंद-ए-जाँ है ऐ दिल उस का हर पेच

'नज़ीर' इक रोज़ अपने ज़ख़्म-ए-सर को
जो बाँधा हम ने दे कर बेशतर पेच

नज़र करते ही उस सरकश ने इक बार
कहा कर के सुख़न का मुख़्तसर पेच

दुआ दीजे हमारी तेग़ को आज
कि जिस ने आप को बख़्शा ये सर-पेच