बुतों के वास्ते तो दीन-ओ-ईमाँ बेच डाले हैं
ये वो माशूक़ हैं जो हम ने काबे से निकाले हैं
वो दीवाना हूँ जिस ने कोह ओ सहरा छान डाले हैं
उन्हीं तलवों से तो टूटे हुए काँटे निकाले हैं
तराशी हैं वो बातें उस सितमगर ने सर-ए-महफ़िल
कलेजे से हज़ारों तीर चुन चुन कर निकाले हैं
जिगर दिल के वरक़ हैं वादा-ए-दीदार से रौशन
उन्हें क्यूँ दूँ किसी को ये तो जन्नत के क़बाले हैं
अगर मुँह से कहा कुछ तो बिखर ही जाएँगे टुकड़े
बड़ी मुश्किल से हम टूटे हुए दिल को सँभाले हैं
हमीं हैं मोजिद-ए-बाब-ए-फ़साहत हज़रत-ए-'शाइर'
ज़माना सीखता है हम से हम वो दिल्ली वाले हैं
ग़ज़ल
बुतों के वास्ते तो दीन-ओ-ईमाँ बेच डाले हैं
आग़ा शाएर क़ज़लबाश