बुतो ख़ुदा से डरो संग दिल सिवा न करो
ये मोम दिल है हमारा इसे जुदा न करो
न ठंडी साँसें भरो दौर-ए-मय में हम-नफ़साँ
ये आग भड़केगी मय-ख़ाने में हवा न करो
हम आँखें बंद करें फिर दिखाओ रंगीनी
जो चोर पकड़ा है तुम शोख़ी-ए-हिना न करो
चकोर हम को बनाया दिखा के उर्यानी
ये खेल चाँदनी में आ के मह-लक़ा न करो
ग़ज़ल में शेर बहुत नर्म हो गए 'अख़्तर'
ये किस ज़बान में कहते हो बद-मज़ा न करो
ग़ज़ल
बुतो ख़ुदा से डरो संग दिल सिवा न करो
वाजिद अली शाह अख़्तर