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बिसात-ए-ज़ात पथराई तो जाना | शाही शायरी
bisat-e-zat pathrai to jaana

ग़ज़ल

बिसात-ए-ज़ात पथराई तो जाना

मोहसिन जलगांवी

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बिसात-ए-ज़ात पथराई तो जाना
ख़बर अख़बार में आई तो जाना

सफ़र आसाँ नहीं है पानियों का
जो तलवे आ गई काई तो जाना

लहू क्या चीज़ है इज़हार क्या है
ग़ज़ल कुछ और बल खाई तो जाना

तो वो भी झूट-चेहरा जी रहा था
जो उस की आँख भर आई तो जाना

विरासत सारी अपने नाम कर ली
मगर उस ने मुझे भाई तो जाना

घरौंदे में भी इक आतिश-कदा था
हमारी जाँ पे बन आई तो जाना

थी 'मोहसिन' ये भी जिंस-ए-ना-मुबारक
हुई शोहरत की रुस्वाई तो जाना