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बिन माँगे मिल रहा हो तो ख़्वाहिश फ़ुज़ूल है | शाही शायरी
bin mange mil raha ho to KHwahish fuzul hai

ग़ज़ल

बिन माँगे मिल रहा हो तो ख़्वाहिश फ़ुज़ूल है

शाहिद ज़की

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बिन माँगे मिल रहा हो तो ख़्वाहिश फ़ुज़ूल है
सूरज से रौशनी की गुज़ारिश फ़ुज़ूल है

किसी ने कहा था टूटी हुई नाव में चलो
दरिया के साथ आप की रंजिश फ़ुज़ूल है

नाबूद के सुराग़ की सूरत निकालिए
मौजूद की नुमूद ओ नुमाइश फ़ुज़ूल है

मैं आप अपनी मौत की तय्यारियों में हूँ
मेरे ख़िलाफ़ आप की साज़िश फ़ुज़ूल है

ऐ आसमान तेरी इनायत बजा मगर
फ़सलें पकी हुई हों तो बारिश फ़ुज़ूल है

जी चाहता है कह दूँ ज़मीन ओ ज़माँ से मैं
मंज़िल अगर नहीं है तो गर्दिश फ़ुज़ूल है

इनआम-ए-नंग-ओ-नाम मिरे काम के नहीं
मज्ज़ूब हूँ सो मेरी सताइश फ़ुज़ूल है