बिखेरे ज़ुल्फ़ रुख़ पर कौन ये बाला-ए-बाम आया
ख़यालों की फ़ज़ा महकी बहारों का पयाम आया
मिज़ाज-ए-यार में जब भी ख़याल-ए-इंतिक़ाम आया
सर-ए-फ़िहरिस्त अपना ही गुनहगारों में नाम आया
अजब हंगामा देखा हम ने साक़ी तेरी महफ़िल में
कोई तिश्ना-दहन उट्ठा कोई छलका के जाम आया
गिराँ-कोशी में अफ़राज़ी तन-आसानी में पामाली
मशक़्क़त सुरख़-रू उट्ठी तसाहुल ज़ेर-ए-दाम आया
ज़ुहूर-ए-सैर-चश्मी ही दलील-ए-कामरानी है
मिरा पिंदार-ए-ना-आसूदगी ही मेरे काम आया
ये मिस्रा दे दिया इक़बाल का किस शोख़-फ़ितरत ने
समंद फ़िक्र के आगे 'ज़िया' मुश्किल मक़ाम आया
ग़ज़ल
बिखेरे ज़ुल्फ़ रुख़ पर कौन ये बाला-ए-बाम आया
बख़्तियार ज़िया