भूलों उन्हें कैसे कैसे कैसे
वो लम्हे जो तेरे साथ गुज़रे
है राह-नुमा जिबिल्लत उन की
बे-हिस नहीं मौसमी परिंदे
ऐ दानिश-वर मफ़र नहीं है
इक़रार-ए-वजूद-ए-किब्रिया से
जाना कोई कारसाज़ भी है
टूटे बन बन के जब इरादे
मेहराब उमूद बुर्ज क़ौसें
रस में डूबे भरे भरे से
बहर-ए-काफ़ूर में तलातुम
भौंरा बैठा कँवल को चूसे
चाक-ए-उफ़क़ी हरीम-ए-ज़ोहरा
रह रह के मदन तरंग झलके
झिलमिल झिलमिल बदन का सोना
लहराएँ लटें कमर से नीचे
क्या चाँद सी सूरतें बनाईं
क़ुर्बान ऐ नीली छतरी वाले
ग़ज़ल
भूलों उन्हें कैसे कैसे कैसे
अब्दुल अज़ीज़ ख़ालिद