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भटकता कारवाँ है और मैं हूँ | शाही शायरी
bhaTakta karwan hai aur main hun

ग़ज़ल

भटकता कारवाँ है और मैं हूँ

मनीश शुक्ला

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भटकता कारवाँ है और मैं हूँ
तलाश-ए-राएगाँ है और मैं हूँ

बताऊँ क्या तुम्हें हासिल सफ़र का
अधूरी दास्ताँ है और मैं हूँ

नया कुछ भी नहीं क़िस्से में मेरे
वही बोझल समाँ है और मैं हूँ

हर इक जानिब तिलिस्माती मनाज़िर
नज़र का इम्तिहाँ है और मैं हूँ

कोई शाहिद नहीं सज्दों का मेरे
जबीं पर इक निशाँ है और मैं हूँ

शिकस्ता बाल-ओ-पर तकते हैं मुझ को
फ़सील-ए-आसमाँ है और मैं हूँ

दुआ माँगूँ कहाँ किस दर पे जा के
दयार-ए-बे-अमाँ है और मैं हूँ

बहुत धुँदली नज़र आती है दुनिया
उमीदों का धुआँ है और मैं हूँ

भटकता हूँ ज़मीं पर सर-बरहना
फ़लक का साएबाँ है और मैं हूँ