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भरे हुए हैं अभी रौशनी की दौलत से | शाही शायरी
bhare hue hain abhi raushni ki daulat se

ग़ज़ल

भरे हुए हैं अभी रौशनी की दौलत से

नोमान शौक़

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भरे हुए हैं अभी रौशनी की दौलत से
दिए जलाएँगे हम भी मगर ज़रूरत से

बहुत से ख़्वाब हक़ीक़त में दिल-नवाज़ न थे
बहुत से लोग चले आ रहे हैं जन्नत से

उसी निगाह से फिर तुम ने मुझ को देख लिया
बदन उतार कर आया था कितनी मेहनत से

यही कि तू बड़ा ख़ुश-हाल है ख़ुदावंदा
ज़रा पता नहीं चलता जहाँ की हालत से

चमकते चाँद सितारों को दफ़्न कर आए
बुझे चराग़ को रक्खा गया हिफ़ाज़त से

बदन के ताक़ में जलते हैं बस बदन के दीप
ये रौशनी है बहुत कम मिरी ज़रूरत से

फिर इस मज़ाक़ को जम्हूरियत का नाम दिया
हमें डराने लगे वो हमारी ताक़त से