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बेवफ़ा के वा'दे पर ए'तिबार करते हैं | शाही शायरी
bewafa ke wade par eatibar karte hain

ग़ज़ल

बेवफ़ा के वा'दे पर ए'तिबार करते हैं

ग़नी एजाज़

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बेवफ़ा के वा'दे पर ए'तिबार करते हैं
वो न आएगा फिर भी इंतिज़ार करते हैं

लोग अब मोहब्बत में कारोबार करते हैं
दिल बचा के रखते हैं जाँ शिकार करते हैं

इशरतें जहाँ-भर की बस उन्हीं का हिस्सा है
जो रविश ज़माने की इख़्तियार करते हैं

शख़्सियत में झांकें तो और ही तमाशा है
बातें जो नसीहत की बे-शुमार करते हैं

अपने दम-क़दम से तो दश्त भी गुलिस्ताँ है
हम जो ख़ारज़ारों को लाला-ज़ार करते हैं

जान से गुज़रते हैं बे-ख़ुदी में अहल-ए-दिल
वो जो चश्म-ए-पुर-फ़न को जुल्फ़िक़ार करते हैं

हों शगूफ़े शाख़ों के या लवें चराग़ों की
सब हवा के दामन पर इंहिसार करते हैं

हम कहाँ के दाना हैं किस हुनर में यकता हैं
लोग फिर भी जाने क्यूँ हम से प्यार करते हैं

जिस जगह पे ख़दशा हो पैर के फिसलने का
हम क़दम वहीं 'एजाज़' उस्तुवार करते हैं