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बेकार ये ग़ुस्सा है क्यूँ उस की तरफ़ देखो | शाही शायरी
bekar ye ghussa hai kyun uski taraf dekho

ग़ज़ल

बेकार ये ग़ुस्सा है क्यूँ उस की तरफ़ देखो

अज़ीज़ लखनवी

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बेकार ये ग़ुस्सा है क्यूँ उस की तरफ़ देखो
आईने की हस्ती क्या तुम अपनी तरफ़ देखो

महदूद है नज़्ज़ारा जब हैं यही दो-आलम
या अपनी तरफ़ देखो या मेरी तरफ़ देखो

मिलने से निगाहों के क्या फ़ाएदा होता है
ये बात मैं समझा दूँ तुम मेरी तरफ़ देखो

मुँह फेर लिया सब ने बीमार को जब देखा
देखा नहीं जाता वो तुम जिस की तरफ़ देखो

मंज़ूर 'अज़ीज़' उस का इरफ़ान जो है तुम को
देखो न किसी जानिब अपनी ही तरफ़ देखो