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बे-ज़बानी ज़बान होती है | शाही शायरी
be-zabani zaban hoti hai

ग़ज़ल

बे-ज़बानी ज़बान होती है

नज़र बर्नी

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बे-ज़बानी ज़बान होती है
इश्क़ की दास्तान होती है

दिल को आया है फिर किसी का ख़याल
फिर तमन्ना जवान होती है

कौन पाएगा ताब-ए-नज़्ज़ारा
उन की अबरू कमान होती है

क्या हुआ लब अगर नहीं हिलते
आँख ख़ुद इक ज़बान होती है

जिस को कहते हैं ज़िंदगी सब लोग
हसरतों का जहाँ होती है

उन का जल्वा हुआ है पेश-ए-नज़र
जुस्तुजू कामरान होती है