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बे-दिली से हँसने को ख़ुश-दिली न समझा जाए | शाही शायरी
be-dili se hansne ko KHush-dili na samjha jae

ग़ज़ल

बे-दिली से हँसने को ख़ुश-दिली न समझा जाए

पीरज़ादा क़ासीम

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बे-दिली से हँसने को ख़ुश-दिली न समझा जाए
ग़म से जलते चेहरों को रौशनी न समझा जाए

गाह गाह वहशत में घर की सम्त जाता हूँ
इस को दश्त-ए-हैरत से वापसी न समझा जाए

लाख ख़ुश-गुमाँ दुनिया बाहमी तअ'ल्लुक़ को
दोस्ती कहें लेकिन दोस्ती न समझा जाए

हम तो बस ये कहते हैं रोज़ जीने मरने को
आप चाहें कुछ समझें ज़िंदगी न समझा जाए

ख़ाक करने वालों की क्या अजीब ख़्वाहिश थी
ख़ाक होने वालों को ख़ाक भी न समझा जाए