बे-अमाँ हूँ इन दिनों मैं दर-ब-दर फिरता हूँ मैं
मैं मवद्दत हूँ वफ़ा हूँ ख़ैर का जज़्बा हूँ मैं
दिल की मौजों में बपा कर के तलातुम-ख़ेज़याँ
अपने अंदर की ज़मीनें काटता रहता हूँ मैं
खेल है सरकश हवाओं के लिए मेरा वजूद
कम-तनाबी जिस की क़िस्मत है वो इक ख़ेमा हूँ मैं
है मुकम्मल वक़्त के सूरज पे मेरा इंहिसार
ज़िंदगी के पाँव से लिपटा हुआ साया हूँ मैं
ऐसी ही बे-चेहरगी छाई हुई है शहर में
आप-अपना अक्स हूँ मैं आप आईना हूँ मैं
कब मिलेगी मुझ को 'सारिम' इस अज़िय्यत से नजात
ज़ेहन-ओ-दिल की कश्मकश में रात दिन उलझा हूँ मैं
ग़ज़ल
बे-अमाँ हूँ इन दिनों मैं दर-ब-दर फिरता हूँ मैं
अरशद जमाल 'सारिम'