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बे-अमाँ हूँ इन दिनों मैं दर-ब-दर फिरता हूँ मैं | शाही शायरी
be-aman hun in dinon main dar-ba-dar phirta hun main

ग़ज़ल

बे-अमाँ हूँ इन दिनों मैं दर-ब-दर फिरता हूँ मैं

अरशद जमाल 'सारिम'

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बे-अमाँ हूँ इन दिनों मैं दर-ब-दर फिरता हूँ मैं
मैं मवद्दत हूँ वफ़ा हूँ ख़ैर का जज़्बा हूँ मैं

दिल की मौजों में बपा कर के तलातुम-ख़ेज़याँ
अपने अंदर की ज़मीनें काटता रहता हूँ मैं

खेल है सरकश हवाओं के लिए मेरा वजूद
कम-तनाबी जिस की क़िस्मत है वो इक ख़ेमा हूँ मैं

है मुकम्मल वक़्त के सूरज पे मेरा इंहिसार
ज़िंदगी के पाँव से लिपटा हुआ साया हूँ मैं

ऐसी ही बे-चेहरगी छाई हुई है शहर में
आप-अपना अक्स हूँ मैं आप आईना हूँ मैं

कब मिलेगी मुझ को 'सारिम' इस अज़िय्यत से नजात
ज़ेहन-ओ-दिल की कश्मकश में रात दिन उलझा हूँ मैं