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बज़्म संवारूँ ग़ज़लें गाऊँ | शाही शायरी
bazm sanwarun ghazlen gaun

ग़ज़ल

बज़्म संवारूँ ग़ज़लें गाऊँ

शोहरत बुख़ारी

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बज़्म संवारूँ ग़ज़लें गाऊँ
जीने के अंदाज़ बनाऊँ

हर दम रो रो ख़ून के आँसू
क्यूँ आँखों की आब गँवाऊँ

कब तक दल के बहकाने पर
तारे गिन गिन रात बिताऊँ

इन को मेरा ध्यान नहीं है
मैं क्यूँ अपनी जान गँवाऊँ

मेरा ग़म किस ने खाया है
मैं क्यूँ दुनिया का ग़म खाऊँ

सब से तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ कर लूँ
ख़ुद से रस्म-ओ-राह बढ़ाऊँ

मरने वालों को मरने दूँ
जीने वालों को अपनाऊँ

हर मय्यत के सिरहाने 'शोहरत'
नग़्मे छेड़ूँ जश्न मनाऊँ