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बज़्म में वो सरफ़राज़ी की अलामत ले गए | शाही शायरी
bazm mein wo sarfaraazi ki alamat le gae

ग़ज़ल

बज़्म में वो सरफ़राज़ी की अलामत ले गए

मोहसिन एहसान

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बज़्म में वो सरफ़राज़ी की अलामत ले गए
जब गए तो साथ मेरा क़द्द-ओ-क़ामत ले गए

ये ग़नीमत है कि उस कू-ए-दिल-आज़ारी से हम
बारिश-ए-संग-ए-सितम में सर सलामत ले गए

पेश करने को न था कुछ भी तही-दस्तों के पास
शहर-ए-बे-तौक़ीर से ज़ाद-ए-नदामत ले गए

कोई भी आसार जिस के अपने चेहरे पर न थे
हम छुपा कर धड़कनों में वो क़यामत ले गए

साया-ए-अम्न-ओ-अमाँ में आश्ना सोते रहे
हम तन-ए-तन्हा ये अम्बार-ए-मलामत ले गए

अंजुमन में उस की 'मोहसिन' चंद बौने जम्अ थे
तुम वहाँ किस ज़ोम में ये क़द्द-ओ-क़ामत ले गए