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बयाबाँ हो कि सहरा हो मुझे तेरा सहारा हो | शाही शायरी
bayaban ho ki sahra ho mujhe tera sahaara ho

ग़ज़ल

बयाबाँ हो कि सहरा हो मुझे तेरा सहारा हो

रज़िया हलीम जंग

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बयाबाँ हो कि सहरा हो मुझे तेरा सहारा हो
तू ही ख़ुर्शीद हो मेरा तू ही मेरा सितारा हो

बुलंदी हो कि पस्ती हो कहीं बैठूँ कहीं जाऊँ
वहीं पर मेरा काबा हो वहीं तेरा नज़ारा हो

न ये दुनिया न वो उक़्बा मिरी तो इक तमन्ना है
रहूँ क़दमों तले तेरे तू ही मेरा किनारा हो

रहो पर्दों में तुम मख़्फ़ी मगर जब दिल में झाँकूँ मैं
तुम्हारा ही नज़ारा हो तुम्हारा ही नज़ारा हो

मिरी आँखों में बस जाओ ज़रा मुझ पर तरस खाओ
ज़मीनों आसमानों में तुम्हीं इक माह-पारा हो