EN اردو
बस एक बार उठें सामना ही कर डालें | शाही शायरी
bas ek bar uThen samna hi kar Dalen

ग़ज़ल

बस एक बार उठें सामना ही कर डालें

मर्ग़ूब असर फ़ातमी

;

बस एक बार उठें सामना ही कर डालें
वबाल-ए-जान है डर ख़ात्मा ही कर डालें

क़ुबूलियत को सुना है कि ज़िद दुआ से है
तो क्यूँ न ऐसा करें बद-दुआ' ही कर डालें

खिसकते लम्हों से ये ज़िंदगी ने पूछ लिया
हक़ीर हम हैं कि तुम फ़ैसला ही कर डालें

निशात-ओ-कैफ़ के सामान अन-क़रीब कहाँ
अब इख़्तिसार-ए-सफ़-ए-मुद्दआ' ही कर डालें

इरादा कर जो लिया तर्क-ए-ख़ुद-कलामी का
तो याद-ए-माज़ी का ग़म मकतबा ही कर डालें

'असर' ज़बान को दुश्वारियाँ भी हैं लाहिक़
सो एहतिमाम कोई दूसरा ही कर डालें